किस तरह ज़ख़्मी किया तुम ने निगाह-ए-नाज़ से
रात भर रोया किया दिल दर्द की आवाज़ से
मेरे दिल को तुम ने छेड़ा कुछ अजब अंदाज़ से
रंग-ए-महफ़िल बढ़ गया उस साज़ की आवाज़ से
देखते हैं वो रुख़-ए-बीमार इस अंदाज़ से
दिल धड़कता है शिकस्त-ए-रंग की आवाज़ से
सामने आ कोई कह दे इस क़दर अंदाज़ से
देख दिल बढ़ते हैं तेरे तीर की आवाज़ से
आज ये राह-ए-जुनूँ में किस ने रक्खा है क़दम
हिल गया सारा जहाँ ज़ंजीर की आवाज़ से
बे-परी से रह गई बुलबुल की सारी आरज़ू
दर क़फ़स के वा हैं और मजबूर है परवाज़ से
इस क़दर सदमा हुआ रंग-ए-गुलिस्ताँ उड़ गया
पर-शिकस्ता बुलबुलों की हसरत-ए-परवाज़ से
देख कर जल्वा भला क्या होश में रहते कलीम
दिल तो टुकड़े हो चुका था इक नई आवाज़ से
देखना है इस मुहिम में किस तरह करता है सब्र
इम्तिहाँ दिल का वो लेंगे पाँव की आवाज़ से
मौत की है नींद सोते हैं शहीदान-ए-वफ़ा
तू सदा दे जाग उठें शायद तिरी आवाज़ से
बज़्म में उन की गया दिल 'नासिरी' मैं भी सुनूँ
आज करते हैं जो बातें वो मिरे हमराज़ से
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