क्या हो गई वो बज़्म-ए-तरब हम नहीं कहते
क्या हो गई वो बज़्म-ए-तरब हम नहीं कहते
किस का है अलम शब-हमा-शब हम नहीं कहते
यारों को है जिस तर्ज़-ए-तख़ातुब से शिकायत
इस तर्ज़-ए-तख़ातुब का सबब हम नहीं कहते
कहने का ये मौक़ा' है न सुनने का महल है
अब आप ही कह लीजिए अब हम नहीं कहते
बे-मा'नी-ओ-मफ़्हूम भी जीते हैं बहुत लोग
क्यों जीते हैं जीने का सबब हम नहीं कहते
इस दौर की हर बात निराली सही लेकिन
ये दौर भी है दौर-ए-'अजब हम नहीं कहते
लोगों को हमारी यही पहचान बहुत है
लोगों से कभी नाम-ओ-नसब हम नहीं कहते
ये देन ख़ुदा की है ख़ुदा जिस को नवाज़े
मिलता है कहाँ 'इल्म-ओ-अदब हम नहीं कहते
मद्धम हो कि रौशन तिरे इज़हार में 'वसफ़ी'
है भी कि नहीं है तिरी छब हम नहीं कहते
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