मैं बदलते मौसमों के रंग से बेज़ार हूँ
मैं बदलते मौसमों के रंग से बेज़ार हूँ
हर नई रुत से चमन में बरसर-ए-पैकार हूँ
हुस्न-ए-यूसुफ़ के ख़रीदारो बढ़ो मेरी तरफ़
मैं अदब के दाएरे में मिस्र का बाज़ार हूँ
वक़्त के हाथों बिगड़ता हूँ सँवरने के लिए
मैं समुंदर के किनारे रेत की दीवार हूँ
कौन सा है मरहला जो मुझ से तय पाता नहीं
मैं ख़ुद अपने रास्ते की मंज़िल-ए-दुश्वार हूँ
जिस को पढ़ना है मुझे वो पहली फ़ुर्सत में पढ़े
सुब्ह के हाथों में पिछली रात का अख़बार हूँ
ख़्वाब है मेरे लिए मौज-ए-हवा की ताज़गी
मैं शजर पर ज़र्द पत्ते की तरह बेदार हूँ
मेरी गर्दन पर 'सबा' है अपनी शोहरत का लहू
मैं अमल की रौशनी में जुर्म का इक़रार हूँ
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