मैं धूप में हूँ तू साया कर दे अमन में ठंडी हवाएँ माँगे
मैं धूप में हूँ तू साया कर दे अमन में ठंडी हवाएँ माँगे
सफ़र पे निकलूँ तो माँ का आँचल सलामती की दुआएँ माँगे
मिरी अदालत है मैं ही मुंसिफ़ वकील भी मैं दलील भी मैं
ख़ता करूँ तो ज़मीर मेरा ख़ुद अपनी ख़ातिर सज़ाएँ माँगे
सुना है परदेस में है दौलत कमा के लाऊँ तो होगी इज़्ज़त
मगर ये दिल तो हमेशा अपने वतन की महकी फ़ज़ाएँ माँगे
वो जिन को आती है दुनिया-दारी यहाँ वही कामयाब होंगे
मगर ये दिल भी है कितना नादाँ हर एक से ये वफ़ाएँ माँगे
सुना है चेहरा भी आइना है कहेगा सच बस यही ख़ता है
यहाँ तो है झूट की हुकूमत ज़माना हम से अदाएँ माँगे
हमें न सरगम न राग आए हमारी आवाज़ किस को भाए
हमारे शे'रों में तल्ख़ियाँ हैं ज़माना मीठी सदाएँ माँगे
हमारी धरती सुलग रही है कि प्यासा सावन चला गया है
सुनो ज़रा आसमाँ से कह दो ज़मीन काली घटाएँ माँगे
मिरी अना मुझ को रोकती है मैं उस के आगे झुकूँ तो कैसे
ग़ुरूर उस का तो हर किसी से ख़ुशामदें इल्तिजाएँ माँगे
- पुस्तक : مرا انتظار کرنا (पृष्ठ 49)
- रचनाकार : ڈاکٹر نسیم نکہت
- प्रकाशन : بالمقابل ٹوریہ گنج اسپتال تلسی داس مارگ۔4 (2010)
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