मजाज़ पर भी ज़रा चश्म-ए-हक़-नुमा करना
मजाज़ पर भी ज़रा चश्म-ए-हक़-नुमा करना
बुतों की याद में ऐ दिल ख़ुदा ख़ुदा करना
बुतों का शेवा तो है ज़ुल्म-ए-ना-रवा करना
मगर ख़बर नहीं अल्लाह को है क्या करना
जो हो सके तो पस-ए-मर्ग ये किया करना
उठा के हाथ मिरी क़ब्र पर दुआ करना
हैं वो ये चाहते पूरा मिरा कहा करना
मुझे भी चाहिए अब तर्क-ए-मुद्दआ करना
ख़िराम-ए-नाज़ से पिस जाऊँ मैं कि मिट जाऊँ
नियाज़-मंद को आता नहीं गिला करना
नियाज़-नामा तो पहुँचाएगा उन्हें लेकिन
हक़-ए-पयाम भी ऐ नामा-बर अदा करना
जवान हो के छुपाएँ वो राज़-ए-दिल क्यूँकर
कि शोख़ियों ने सिखाया नहीं हया करना
जफ़ा-ओ-जौर पर ऐ दिल न शिकवा मुँह से निकाल
कहीं न बैठे-बिठाए उसे ख़फ़ा करना
हरीस-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार को ये आता है
सज़ा के शौक़ में हर फ़े'ल ना-सज़ा करना
तुम्हारा ध्यान तो हर-वक़्त हम को रहता है
ख़याल कुछ तो हमारा भी तुम को था करना
किया है अहद-ए-मोहब्बत तो फिर निबाह भी हो
बताओ साफ़ न करना है तुम को या करना
रिया पसंद नहीं किब्रिया को ऐ 'हामिद'
इबादत उस की जो करना तो बे-रिया करना
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