मौज-ए-सरकश हूँ मैं न दरिया हूँ
मौज-ए-सरकश हूँ मैं न दरिया हूँ
फिर भी इक मंज़र-ए-तमाशा हूँ
चंद क़तरों में वो हुआ सैराब
मैं समुंदर हूँ फिर भी प्यासा हूँ
अपनी ही जुस्तुजू में गुम तन्हा
मैं घने जंगलों में रहता हूँ
तुम जो बदले हो मौसमों की तरह
वक़्त के साथ मैं भी बदला हूँ
मेरा मस्कन है सीना-ए-कोहसार
मैं इक आईना-ए-सरापा हूँ
वो है शबनम के आबगीनों में
मैं इक आसूदा-ए-तमन्ना हूँ
'साहिल' उस की निगाह है मुझ पर
बज़्म में इक तरफ़ मैं बैठा हूँ
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