मौसमों के साथ चलने का हुनर रखता हूँ मैं
मौसमों के साथ चलने का हुनर रखता हूँ मैं
दोष पर ठंडी हवा के अपना घर रखता हूँ मैं
गर्दिश-ए-हालात ने पहुँचा दिया मुझ को कहाँ
अपनी रातें अपने दिन अपनी सहर रखता हूँ मैं
आप की तहरीर के इस पेच-ओ-ख़म को देख कर
अपने अंदाज़-ए-निगारिश पर नज़र रखता हूँ मैं
आगही का दर्स शामिल जिस में होता है 'अदीम'
वो सबक़ अपनी नज़र में मो'तबर रखता हूँ मैं
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