मौत आती है ग़म आता है अज़ाब आता है
मौत आती है ग़म आता है अज़ाब आता है
साथ इन आफ़तों को ले के शबाब आता है
आफ़तें आएँगी हो जाएगा महशर बरपा
शोख़ियाँ साथ लिए उन का शबाब आता है
एक ही बार जवानी हो क़यामत आ जाए
नाज़ करता हुआ क्यों उन का शबाब आता है
उस के आने की न जाने की ख़बर होती है
जाता भी वैसे ही है जैसे शबाब आता है
यूँ तिरी तरह क़यामत नहीं ढाता कोई
सब ही पर आलम-ए-हस्ती में शबाब आता है
शो'ला-रूयों की मोहब्बत में फुंका जाता हूँ
दिल जलाने के लिए अहद-ए-शबाब आता है
हर अदा बन के क़ज़ा जान लिए लेती है
उन का अठखेलियाँ करता जो शबाब आता है
पेश-ख़ेमा है जवानी का किसी की महरम
जोबन उठ उठ के ये कहता है शबाब आता है
छीने जाएँगे जिगर लूट दिलों की होगी
लश्कर-ए-नाज़ लिए उन का शबाब आता है
तुम पे मरते तो हैं और इस से सिवा क्या होगा
क्यों डराते हो ये कह कह के शबाब आता है
ख़ाक हो मुझ को ख़ुशी उन के जवाँ होने की
मेरी हस्ती के मिटाने को शबाब आता है
देखिए होती है अब कौन सी आफ़त बरपा
जिस का बचपन है ग़ज़ब उस पे शबाब आता है
इस क़दर क्यों दिल-ए-उश्शाक़ हैं घबराए हुए
किस सितम-केश पे आलम में शबाब आता है
देखिए गिरती है कितनों के दिलों पर बिजली
सुनते हैं धूम से उस बुत का शबाब आता है
ये जवानी ही तो है गुलशन-ए-हस्ती का उभार
और हो जाती है सूरत जो शबाब आता है
शोख़ियों ने तिरी बेचैन किया कुछ ऐसा
देखने आलम-ए-तिफ़्ली को शबाब आता है
जिस तरह धूप से आ जाए कोई साया में
इतनी सी देर को इंसाँ पे शबाब आता है
पर्दे पर्दे में जताता है ये सीने का उभार
ले के कुछ मुट्ठियों में उन का शबाब आता है
अपनी बर्बादी का पहले ही से मातम कर लें
कहती हैं उन की अदाएँ कि शबाब आता है
सैकड़ों मिन्नतें इस दिन के लिए मानी थीं
शुक्र करता हूँ कि अब उस पे शबाब आता है
रहते हैं ख़ल्क़ में अफ़्साने सितम के बरसों
और दो दिन को हसीनों पे शबाब आता है
मिलने वाला है क़यामत का सितम को रुत्बा
हुस्न उस बुत का बढ़ाने को शबाब आता है
क़हर की उस के बयाँ हो नहीं सकती हालत
उस से ही पूछिए जिस पर कि शबाब आता है
और ऐ 'बज़्म' किसी का नहीं कुछ बिगड़ेगा
मेरी ही रेढ़ लगाने को शबाब आता है
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