मिला है दिल हमें दिलबर की आरज़ू के लिए
रोचक तथ्य
(25th December, 1958) (In the memory of Sail Dehlvi)
मिला है दिल हमें दिलबर की आरज़ू के लिए
ज़बाँ मिली है मोहब्बत की गुफ़्तुगू के लिए
तुझे हरम में कलीसा में दैर में ढूँढा
कहाँ कहाँ न उठे पाँव जुस्तुजू के लिए
तुम आ गए तो न हम तुम से कह सके कुछ भी
मगर ज़बान बनी आँख गुफ़्तुगू के लिए
पसंद आप को अपने लिए जो हो न सुलूक
न भूल कर भी गवारा करें अदू के लिए
कभी ब-पास-ए-अदब आँख भी नहीं उठती
कभी ज़बान तड़पती है गुफ़्तुगू के लिए
किसी की आँख में आँसू भी अब नहीं आते
ये बुख़्ल वो भी फ़क़त बूँद भर लहू के लिए
जनाब-ओ-आप मुबारक मिरे हरीफ़ों को
मुझे तो तू ने मुख़ातब किया है तू के लिए
जिगर के चाक सलामत रहें क़यामत तक
कभी ये चाक मचलते नहीं रफ़ू के लिए
ख़याल आए बशर को जो बे-सबाती का
जिए ज़रा भी न दुनिया-ए-रंग-ओ-बू के लिए
दिया था जिस ने कभी इज़्न-ए-मय-कशी साक़ी
वो बद-नसीब तड़पता है इक सुबू के लिए
न मर गया हो अगर तेरी आँख का पानी
तो चंद बूँद हमें भी मिलें वुज़ू के लिए
जिन्हें ख़बर नहीं कहते हैं आबरू किस को
वो जान देंगे भला हिफ़्ज़-ए-आबरू के लिए
मुशाहिदात बसीरत नहीं तो कुछ भी नहीं
नज़र भी चाहिए चश्म-ए-नज़ारा-जू के लिए
ज़बान खुल न सकी उन के रू-ब-रू 'तालिब'
कि ख़ामुशी भी ज़रूरी थी गुफ़्तुगू के लिए
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