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मिरे क़रीब से गुज़रा इक अजनबी की तरह

शाहिद इश्क़ी

मिरे क़रीब से गुज़रा इक अजनबी की तरह

शाहिद इश्क़ी

MORE BYशाहिद इश्क़ी

    रोचक तथ्य

    1963

    मिरे क़रीब से गुज़रा इक अजनबी की तरह

    वो कज-अदा जो मिला भी तो ज़िंदगी की तरह

    मिला था तो गुमाँ उस पे था फ़रिश्तों का

    जो अब मिला है तो लगता है आदमी की तरह

    किरन किरन उतर आई है रौज़न-ए-दिल से

    किसी हसीं की तमन्ना भी रौशनी की तरह

    मिरी निगाह से देखो तो हम-ज़बाँ हो जाओ

    कि दुश्मनी भी किसी की है दोस्ती की तरह

    मिलने वाले किनारों का नाम ठहरा शौक़

    गुरेज़-पा है जहाँ हुस्न इक नदी की तरह

    खुल सका तो लहू हो के बह गया है दिल

    कभी खिला तो महक उट्ठेगा कली की तरह

    हज़ार शे'र हैं और एक ख़ामुशी की अदा

    हज़ार रंग हैं और एक सादगी की तरह

    बहुत दिनों में मिले हैं हम आज 'इश्क़ी' से

    नहीं वो फिर भी कोई शख़्स है उसी की तरह

    स्रोत :
    • पुस्तक : Qamat (पृष्ठ 40)
    • रचनाकार : Shahid Ishqui
    • प्रकाशन : Arshia Publications (1985)
    • संस्करण : 1985

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