मोहब्बत वो है जिस में कुछ किसी से हो नहीं सकता
मोहब्बत वो है जिस में कुछ किसी से हो नहीं सकता
जो हो सकता है वो भी आदमी से हो नहीं सकता
ये कहना है तो क्या कहना कि कहते कहते रुक जाना
बयान-ए-हसरत-ए-दिल भी तो जी से हो नहीं सकता
उचटती सी निगाहें कब जिगर के पार होती हैं
करो ख़ूँ दोस्त बन कर दुश्मनी से हो नहीं सकता
हमें क्यों दिल दिया और दिलरुबाई उन में क्यों रक्खी
ख़ुदा दुश्मन बुतों की बंदगी से हो नहीं सकता
दम-ए-रुख़्सत वो मुझ को देख कर बे-ख़ुद तो क्या होगा
न उठने दें उन्हें ये भी ग़शी से हो नहीं सकता
ब-रंग-ए-नाला किस किस धूम से उड़ता है रंग अपना
तिरी फ़ुर्क़त का पर्दा ख़ामुशी से हो नहीं सकता
'क़लक़' पैग़ाम तेरा और बयाँ फिर उस सितमगर से
किसी से हो नहीं सकता किसी से हो नहीं सकता
- पुस्तक : غزل اس نے چھیڑی (पृष्ठ 29)
- प्रकाशन : ریختہ بکس بی۔37،سیکٹر۔1،نوئیڈا (2017)
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.