मुद्दआ'-ए-असर-ए-उल्फ़त-ए-पिन्हाँ निकला
ले के हमराह मिरा दिल तिरा पैकाँ निकला
आज किस ने ग़म-ए-दुनिया से रिहाई पाई
कौन कूचे से तिरे चाक-गरेबाँ निकला
उठ गया ख़ैर मैं अरमान लिए दुनिया से
आप के दिल का तो अरमान मिरी जाँ निकला
ज़ब्ह कर के मुझे क्या जानिए क्या याद आया
क़त्ल-गह से मिरा क़ातिल भी पशेमाँ निकला
साफ़ ज़ाहिर है जो है ख़ाना-ए-ज़ंजीर उदास
मर के ज़िंदाँ से कोई बे-सर-ओ-सामाँ निकला
दफ़अ'तन कर दिए सफ़्फ़ाक ने लाखों टुकड़े
दम भी निकला मिरे दिल का तो परेशाँ निकला
अपने कूचे में जिसे तुम ने किया था पामाल
यही वो दिल था न जिस का कोई अरमाँ निकला
'नासिरी' पाई न फ़ुर्सत कि ग़ज़ल कहते ख़ूब
हौसला कुछ न सर-ए-बज़्म-ए-सुख़न-दाँ निकला
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