मुझे था नाज़ इक दिल पर हुआ नज़्र-ए-जुनूँ वो भी
मुझे था नाज़ इक दिल पर हुआ नज़्र-ए-जुनूँ वो भी
जुनूँ कैसा कि हुस्न-ए-यार का था इक फ़ुसूँ वो भी
मोहब्बत को जुनूँ तो हम भी कहते हैं मगर फिर भी
जिसे कहते हैं सब तर्क-ए-मोहब्बत है जुनूँ वो भी
मोहब्बत एक शो'ला जिस में गर्मी भी उजाला भी
जिसे समझा था साज़-ए-इश्क़ है सोज़-ए-दरूँ वो भी
अगर जन्नत फ़क़त आसूदगी काम-ओ-दहन की है
तो फिर क्यों मेरी नज़रों में न हो दुनिया-ए-दूँ वो भी
तुम्हारी नज़्र के क़ाबिल अगर कुछ था तो दिल मेरा
मगर है पंजा-ए-आलाम में सैद-ए-ज़बूँ वो भी
रहे दुनिया के तालिब तर्क-ए-दुनिया कर के भी देखा
तमन्नाओं का ख़ूँ ये भी तमन्नाओं का ख़ूँ वो भी
दयार-ए-इश्क़ में हम ख़ाकसार अच्छे रहे 'जावेद'
जो सरकश थे यहाँ पाए गए हैं सर-निगूँ वो भी
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