मुख़्तसर से मुख़्तसर ये इश्क़ का अंजाम है
मुख़्तसर से मुख़्तसर ये इश्क़ का अंजाम है
नज़ीर मोहम्मद आरज़ू जयपुरी
MORE BYनज़ीर मोहम्मद आरज़ू जयपुरी
मुख़्तसर से मुख़्तसर ये इश्क़ का अंजाम है
हर तमन्ना मुज़्तरिब हर आरज़ू नाकाम है
बंद आँखें देख कर वक़्त-ए-सहर हैराँ न हो
अब तो बीमार-ए-मोहब्बत को सहर भी शाम है
देखना बीमार-ए-ग़म ने चुपके चुपके क्या कहा
हाल-ए-दिल कुछ कह रहा है या किसी का नाम है
मेरी हस्ती पैकर-ए-इबरत है आलम के लिए
मेरी बर्बादी मोहब्बत का खुला अंजाम है
मेरा जज़्ब-ए-इश्क़ आख़िर मेरा जज़्ब-ए-इश्क़ है
हुस्न को नीचा दिखा दूँ जब तो मेरा नाम है
क्यों नहीं देती जवाब उन को निगाह-ए-इल्तिफ़ात
मुझ पे क्यों आख़िर सुकून-ए-क़ल्ब का इल्ज़ाम है
देखना तशरीफ़ लाते हैं जनाब-ए-‘आरज़ू’
हाथ में शीशा बग़ल में इक सुबू-ए-ख़ाम है
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