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न आए वो पहले तवक़्क़ुफ़ किया

मुज़फ़्फ़र अली असीर

न आए वो पहले तवक़्क़ुफ़ किया

मुज़फ़्फ़र अली असीर

MORE BYमुज़फ़्फ़र अली असीर

    आए वो पहले तवक़्क़ुफ़ किया

    मुए हम तो क्या क्या तअस्सुफ़ किया

    मिला ज़हर अगर हाथ से यार के

    उसे नोश-ए-जाँ बे-तकल्लुफ़ किया

    मरे क्यों दुनिया ज़ुलेख़ा की तरह

    ख़ुदा ने तुम्हें रश्क-ए-यूसुफ़ किया

    अगर गंज-ए-क़ारूँ भी हाथ गया

    उसी वक़्त हम ने तसर्रुफ़ किया

    फ़क़त सूफ़-पोशी पे पाया मदार

    जो दरयाफ़्त हाल-ए-तसव्वुफ़ किया

    मिरे घर में तशरीफ़ लाए जो तुम

    ‘इनायत ‘इनायत तलत्तुफ़ किया

    रहा याद मुतलक़ अहद-ए-अलस्त

    जो वा'दा था उस में तख़ल्लुफ़ किया

    मिरे दाग़-ए-दिल की जो पहुँची हवा

    जहन्नुम ने भी शोर उफ़ उफ़ किया

    पिया ख़ून-ए-दिल लुक़्मा-ए-ग़म के साथ

    ग़िज़ा में जो हम ने तकल्लुफ़ किया

    मु'अर्रिफ़ है अल्लाह भी हुस्न का

    कि क़ुरआन में ज़िक्र-ए-यूसुफ़ किया

    ग़लत क्यों दीवाँ हो मेरा 'असीर'

    कि कातिब ने इस में तसर्रुफ़ किया

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