न तेरी याद न वो लुतफ़-ए-आह-ए-नीम-शबी
न तेरी याद न वो लुतफ़-ए-आह-ए-नीम-शबी
दिल-ओ-दिमाग़ हुए वक़्फ़-ए-रंज-ए-बे-सबबी
तिरे करम ने किया ये भी इक सितम हम पर
कि चश्म-ए-शौक़ ने सीखी न मुद्दआ-तलबी
ग़म-ए-नशात के मारों को कौन समझाए
ख़ुमार-ए-मय से है बढ़ कर सुरूर-ए-तिश्ना-लबी
वो ख़ाना-ज़ाद-ए-बहाराँ है उस को ज़ेबा है
गुलाब-पैरहनी गुल-रुख़ी-ओ-ग़ुन्चा-लबी
हवस में इक सुख़न-ए-राएगाँ की वो भी गया
मता'-ए-ग़ुंचा था जो इज़्तिराब-ए-जाँ बलबी
कोई नज़र नहीं शाइस्ता-ए-सुख़न वर्ना
वही है चश्म-ए-फ़ुसूँ-गर की गुफ़्तुगू-तलबी
मिरा वजूद सही एक मुश्त-ए-ख़ाक मगर
है ज़र्रे ज़र्रे में ए'लान-ए-कहकशाँ-नसबी
ख़िरद हिजाब-ए-हक़ीक़त उठा तो दे लेकिन
अभी जुनूँ को गवारा नहीं ये बे-अदबी
हवा-ए-ज़र से हुआ कम न हब्स-ए-जाँ हरगिज़
मिटी न आब-ए-गुहर से किसी की तिश्ना-लबी
यक़ीं तो क्या मिरे वहम-ओ-गुमाँ लरज़ उट्ठे
निगार-ख़ाना-ए-फ़ितरत में थी वो बुल-अजबी
निगाह-ए-यार थी माइल-ब-दर-गुज़र लेकिन
हमीं रहे न अदब-आश्ना-ए-बे-अदबी
तमाम शहर पे बैठी है उस के 'इल्म की धाक
कि बोलता है वो उर्दू ब-लहजा-ए-अरबी
ख़ुदा का फ़ज़्ल है और फ़ैज़-ए-साक़ी-ए-शीराज़
कि मेरे शे'र में है कैफ़-ए-बादा-ए-इनबी
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