नक़्श-ए-क़दम मिले जो तिरे चल के सर से हम
नक़्श-ए-क़दम मिले जो तिरे चल के सर से हम
अक्सर गुज़र गए हैं तिरी रहगुज़र से हम
हैं बे-नियाज़ तनदही-ए-चारागर से हम
बे-ख़ुद रहे इनायत-ए-दर्द-ए-जिगर से हम
समझे जहाँ को अपना बड़े कर्र-ओ-फ़र से हम
देखे गए हमेशा पराई नज़र से हम
नक़्श-ए-क़दम से चिमटे तिरी रहगुज़र से हम
पर तेरी दीद को रहे तरसे के तरसे हम
हम देखते हैं तुम को हमारी निगाह से
ग़ैरों को देखते हैं तुम्हारी नज़र से हम
महफ़ूज़ कर ले अपने लिए ग़म-गुसारियाँ
सय्याद बा-ख़बर हैं तिरे ख़ैर-ओ-शर से हम
तुम को समझ के तुम सितम अपने पे ढा लिए
किस दर्जे बे-ख़बर हैं हमारी ख़बर से हम
अल्लाह शैख़ जी को तू जन्नत करे नसीब
वाबस्ता सुब्ह-ओ-शाम रहें उन के दर से हम
लाते न तेरे इश्क़ में शिकवे ज़बान पर
आप अपने को समझते अगर पेशतर से हम
हम तेरे हो के बज़्म में तेरी न रह सके
महफ़िल थी तेरी आँख सी तेरी नज़र से हम
या पार होंगे चीर के या डूब जाएँगे
साहिल पे रुक न जाएँगे तूफ़ाँ के डर से हम
निकली हुई दुआएँ अभी जुस्तुजू में हैं
शायद बईद-तर हैं मक़ाम-ए-असर से हम
नज़रों से सब की गिर गए परवा न थी हमें
लेकिन ग़ज़ब है गिरते हैं अपनी नज़र से हम
क्या हश्र होने वाला है देखेंगे ऐ 'ज़की'
बैठे हैं दिल लगा के किसी फ़ित्ना-गर से हम
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