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नशात-ए-दर्द के मौसम में गर नमी कम है

पी पी श्रीवास्तव रिंद

नशात-ए-दर्द के मौसम में गर नमी कम है

पी पी श्रीवास्तव रिंद

MORE BYपी पी श्रीवास्तव रिंद

    नशात-ए-दर्द के मौसम में गर नमी कम है

    फ़ज़ा के बर्ग-ए-शफ़क़ पर भी ताज़गी कम है

    सराब बन के ख़लाओं में गुम नज़ारा-ए-सम्त

    मुझे लगा कि ख़लाओं में रौशनी कम है

    अजीब लोग हैं काँटों पे फूल रखते हैं

    ये जानते हुए इन में मुक़द्दरी कम है

    कोई ख़्वाब यादों का बे-कराँ सा हुजूम

    उदास रात के ख़ेमे में दिलकशी कम है

    मैं अपने-आप में बिखरा हुआ हूँ मुद्दत से

    अगर मैं ख़ुद को समेटूँ तो ज़िंदगी कम है

    खुली छतों पे दुपट्टे हवा में उड़ते नहीं

    तुम्हारे शहर में क्या आसमान भी कम है

    पुरानी सोच को समझें तो कोई बात बने

    जदीद फ़िक्र में एहसास-ए-नग़्मगी कम है

    कहाँ से लाओगे 'रिंद' मो'तबर मज़मून

    ग़ज़ल में जबकि रिवायत की चाशनी कम है

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    नशात-ए-दर्द के मौसम में गर नमी कम है पी पी श्रीवास्तव रिंद

    स्रोत :
    • पुस्तक : bujht-e-lamhon ka dhuvan (पृष्ठ 24)
    • रचनाकार : pp srivastv rind
    • प्रकाशन : niralii duniya publication (2012)
    • संस्करण : 2012

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