नस्ल वो बाक़ी कहाँ बची है हिजरत करने वालों की
नस्ल वो बाक़ी कहाँ बची है हिजरत करने वालों की
अब तो क़तारें लगी हुई हैं जैसे मरने वालों की
खुली हुई है छत पर खिड़की एक पुराने कमरे की
जिस से कोई देखा करता था शक्ल गुज़रने वालों की
कुछ दिन उन में रह कर देखा तो इक दम एहसास हुआ
कैसी है बे-रंग सी दुनिया बनने-सँवरने वालों की
देखो यार इस ख़ाली घर से बरसों बा'द भी शाम ढले
आवाज़ें आती रहती हैं आहें भरने वालों की
कितनी चीज़ें पड़ी हुई हैं बाहर बे-तरतीबी से
अपने अंदर लम्हा-लम्हा रोज़ बिखरने वालों की
तन्हाई की गर्द में लिपटी बोल रही हैं तस्वीरें
आँखों में तो झाँक के देखो ख़ुद से डरने वालों की
आहिस्ता आहिस्ता सब किरदार 'अयाँ हो जाएँगे
पुश्त-पनाही करते रहे हैं जो भी धरने वालों की
चेहरे 'ज़हूर' अब याद नहीं हैं इतना याद है लहरों में
चीख़ें सुनी थीं लोगों ने दरिया में उतरने वालों की
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