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नज़र से सब की पिन्हाँ है जो अंदाज़-ए-नज़र अपना

इशरत अनवर

नज़र से सब की पिन्हाँ है जो अंदाज़-ए-नज़र अपना

इशरत अनवर

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    नज़र से सब की पिन्हाँ है जो अंदाज़-ए-नज़र अपना

    कहीं मिट्टी में मिल जाए सब कस्ब-ए-हुनर अपना

    मुहीत-ए-सोज़-ए-आलम है अगर सोज़-ए-हुनर अपना

    ब-क़द्र-ए-वुसअ'त-ए-दिल चाहिए दर्द-ए-जिगर अपना

    ग़ज़ल-गोई की तोहमत क्यों मिरे ज़ौक़-ए-जुनूँ पर है

    नहीं मिन्नत-कश-ए-रस्म-ए-हुनर ज़ौक़-ए-हुनर अपना

    हर इक का दर्द ही बाइ'स अगर है दर्द का अपने

    कहाँ तक चारा-जूई कर सकेगा चारागर अपना

    प-ए-तौसीअ'-ए-फ़न दार-ओ-रसन हैं मुंतज़िर मेरे

    बहुत मिन्नत-कश-ए-तौफ़ीक़-ए-दुश्मन है हुनर अपना

    क़दम सदियों के ऊपर हैं नज़र सदियों से आगे है

    नई ता'मीर में सरमस्त है ज़ौक़-ए-हुनर अपना

    यही इक इंतिक़ाम अपना बहुत काफ़ी है दुनिया से

    अगर ग़ुस्से में दुनिया से छुपा रक्खूँ हुनर अपना

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