निकल गया है कोई मार-धाड़ करते हुए
निकल गया है कोई मार-धाड़ करते हुए
भरी-पुरी मिरी आँखें उजाड़ करते हुए
ये रत-जगे सर-ए-वहशत घसीटते हैं मुझे
मैं लौटती हूँ किताबों को आड़ करते हुए
अजीब तर्ज़-ए-हुनर पर अड़े हैं लोग यहाँ
बनाओ सीख रहे हैं बिगाड़ करते हुए
न-जाने कौन सी राई अदू के हाथ लगी
कि नीम-जान है उस को पहाड़ करते हुए
चटान जैसा तअ'ल्लुक़ भी टूट जाता है
ज़रा सी दर्ज़ को गहरी दराड़ करते हुए
हमें ये कैसा दरिंदा सिफ़ात दौर मिला
गुज़र रहा है बहुत चीर-फाड़ करते हुए
यहाँ-वहाँ के फ़रेबों से टोकरी भर ली
इधर उधर से ख़ुशी का जुगाड़ करते हुए
अदल-बदल में ही खे़मे तबाह कर डाले
यहाँ न गाड़ वहाँ से उखाड़ करते हुए
भड़क रहे हो मुसलसल सर-ए-सुकूत-ओ-सुख़न
किसी हसद में ख़यालों को भाड़ करते हुए
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