पड़ा हुआ था ये कब से सनम इधर पर्दा
पड़ा हुआ था ये कब से सनम इधर पर्दा
उड़ा गई है हवा आज ये किधर पर्दा
है इब्तिदा ये मोहब्बत की तुम समझ लेते
बुझा बुझा सा ही रहने लगे अगर पर्दा
क़रार आता कहाँ है बिना उन्हें देखे
शरीफ़ इतना हूँ लगता है मो'तबर पर्दा
उतार कर ज़रा अपना नक़ाब वो रख दें
इधर-उधर भी उड़े जाए फिर ठहर पर्दा
निभा रहा था अभी साथ कल तलक वो भी
हवा चली तो हुआ है किधर किधर पर्दा
निगाह हम ने जहाँ से छुपा के रक्खा है
चुरा चुरा के नज़र देखा था मगर पर्दा
छुपी हुई है किसी दर्दमंद की ग़ैरत
है क़ीमती सा लगे हम को माल ज़र पर्दा
गुनाह कोई कहे हम सवाब कहते हैं
नज़र से चूमते 'आकिब' हज़ार गर पर्दा
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