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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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पस-ए-ग़ुबार-ए-हवस रात ढलती रहती है

मज़हर इमाम

पस-ए-ग़ुबार-ए-हवस रात ढलती रहती है

मज़हर इमाम

MORE BYमज़हर इमाम

    पस-ए-ग़ुबार-ए-हवस रात ढलती रहती है

    नशे में चूर पिघलती मचलती रहती है

    ख़बर यही है कि आग़ोश-ए-हिज्र में पहरों

    तुम्हारी याद भी पहलू बदलती रहती है

    ये मैं ने देखा है अक्सर फटी पुरानी हयात

    सर-ए-दरीचा-ए-शब हाथ मलती रहती है

    क़फ़स से हम भी निकलने को कब से हैं बे-ताब

    मगर वो साअ'त-ए-आख़िर जो टलती रहती है

    वो रंग रंग बहाराँ है खुलता रहता है

    वो शाख़ शाख़ समर-वर है फलती रहती है

    है एक कार-ए-ज़ियाँ शहर शहर दर-बदरी

    मगर यही कि तबी'अत बहलती रहती है

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