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फिर किसी हादसे का दर खोले

आस्नाथ कंवल

फिर किसी हादसे का दर खोले

आस्नाथ कंवल

MORE BYआस्नाथ कंवल

    फिर किसी हादसे का दर खोले

    पहले पर्वाज़ को वो पर खोले

    जैसे जंगल में रात उतरी हो

    यूँ उदासी मिली है सर खोले

    पहले तक़दीर से निमट आए

    फिर वो अपने सभी हुनर खोले

    मंज़िलों ने वक़ार बख़्शा है

    रास्ते चल पड़े सफ़र खोले

    जो समझता है ज़िंदगी के रुमूज़

    मौत का दर वो बे-ख़तर खोले

    है 'कँवल' ख़ौफ़ राएगानी का

    कैसे इस ज़िंदगी का डर खोले

    स्रोत :
    • पुस्तक : Mujalla Dastavez (पृष्ठ 662)
    • रचनाकार : Aziz Nabeel
    • प्रकाशन : Edarah Dastavez (2013-14)
    • संस्करण : 2013-14

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