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फिर समाअ'त को भी भाता है रिदम तरतीब से

मुहम्मद तौसीफ़

फिर समाअ'त को भी भाता है रिदम तरतीब से

मुहम्मद तौसीफ़

MORE BYमुहम्मद तौसीफ़

    फिर समाअ'त को भी भाता है रिदम तरतीब से

    हो अगर उस में तिरे लहजे का दम तरतीब से

    तुझ से मिलते ही यूँ खिल जाते हैं हम तरतीब से

    जूँ हो पतझड़ में बहारों का जनम तरतीब से

    एक इक कर के करेंगे पेश सब फ़रमाइशें

    या'नी ढाए जाएँगे तुम पर सितम तरतीब से

    हो दिल-ए-मुफ़्लिस में ख़ूबाँ को सुकूँ कैसे कि है

    ला-मुहाला धड़कनों का ज़ेर-ओ-बम तरतीब से

    यार बे-ढंगा चलन अच्छा नहीं है ज़ीस्त में

    हम उसूली हैं उठाएँगे क़दम तरतीब से

    मौत बर-हक़ तो है लेकिन इक क़रीने की तरह

    ख़ुद को मैं ले कर गया सू-ए-अदम तरतीब से

    जूस चाय नाश्ता फिर करते हैं कुछ दौड़-धूप

    जब अमीरी हो तो भरता है शिकम तरतीब से

    रास्ते हमवार होते ही नहीं मेरे लिए

    ठोकरें खा के बना हूँ मैं तहम तरतीब से

    अहद-ए-फ़ुर्क़त चंद आँसू और हिचकी मौत की

    वक़्त-ए-रुख़्सत है सो निकले है नसम तरतीब से

    ज़िंदगी में सिर्फ़ बचपन को मुयस्सर है सुकूँ

    फिर जवानी और ज़ईफ़ी हैं अलम तरतीब से

    चार उंसुर यूँ तो हैं तख़्लीक़-ए-इंसाँ में मगर

    पाँचवाँ दुख मुझ में शामिल है बहम तरतीब से

    सब की सुनता था कभी रूदाद 'अल्वी' शौक़ से

    झूट सुन सुन के बना है ये असम तरतीब से

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