पीत की चंचल अगन थी दायरा-दर-दायरा
पीत की चंचल अगन थी दायरा-दर-दायरा
रक़्स में कोई लगन थी दायरा-दर-दायरा
आस की सुंदर किरन थी दायरा-दर-दायरा
शोख़ी-ए-रंग-ए-चमन थी दायरा-दर-दायरा
ख़ुद में ही कितनी मगन थी दायरा-दर-दायरा
जुस्तुजू जो बे-थकन थी दायरा-दर-दायरा
चुटकियाँ लेता रहा था हादिसा इक क़ुर्ब का
नाचती शीतल पवन थी दायरा-दर-दायरा
उजली उजली रौशनी से खेलती थी दम-ब-दम
तेरी ज़ुल्फ़-ए-पुर-शिकन थी दायरा-दर-दायरा
चेहरा चेहरा कुछ नई बे-ताबियों से आश्ना
सोच की दिलबर थकन थी दायरा-दर-दायरा
दम-ब-दम आँखों में रक़्साँ नित-नए अंदाज़ से
शोख़ी-ए-सीमीं-बदन थी दायरा-दर-दायरा
चंद ना-कर्दा गुनाहों के तवाफ़-ए-शौक़ में
फ़िक्र-ओ-फ़न की इक झनन थी दायरा-दर-दायरा
फिर किसी हर्फ़-ए-तही का ज़ाइक़ा लब पर लिए
एक चिंता तन-बदन थी दायरा-दर-दायरा
इक जवाँ सी सनसनाहट का दरख़्शाँ सिलसिला
आरज़ूओं की फबन थी दायरा-दर-दायरा
उभरे सीनों की मचलती मरमरीं सी ताज़गी
किस क़दर तौबा-शिकन थी दायरा-दर-दायरा
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