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प्यासा हूँ रेग-ज़ार में दरिया दिखाई दे

शाज़ तमकनत

प्यासा हूँ रेग-ज़ार में दरिया दिखाई दे

शाज़ तमकनत

MORE BYशाज़ तमकनत

    प्यासा हूँ रेग-ज़ार में दरिया दिखाई दे

    जो हाल पूछ ले वो मसीहा दिखाई दे

    हर ताज़ा-वारिद-ए-ख़म-ए-गेसू को देख कर

    मुझ को फिर अपना अहद-ए-तमन्ना दिखाई दे

    क़ुर्बत की आँच आई कि जलने लगा बदन

    दूरी का दौर आज चमकता दिखाई दे

    लहजे के लोच में है गुनाहों की दिलकशी

    आँखों में मा'बदों का सवेरा दिखाई दे

    हर ज़ाविए को जिस्म के अहल-ए-नज़र की प्यास

    हर ख़त तिरे बदन का सरापा दिखाई दे

    चुभते हुए लिबास का छनता हुआ जमाल

    बुत-गर नक़ाब-ए-संग उलटता दिखाई दे

    पड़ती है सात रंगों पे तेरे बदन की चोट

    जो रंग तू पहन ले वो गहरा दिखाई दे

    क्या क्या हक़ीक़तों पे हैं पर्दे पड़े हुए

    तू है किसी का और किसी का दिखाई दे

    ख़ल्वत की अंजुमन है वफ़ाओं का सिलसिला

    क्या ज़िक्र-ए-इश्क़ हुस्न भी तन्हा दिखाई दे

    इस आस ने तो अपना सफ़ीना डुबो दिया

    तूफ़ाँ थमे तो कोई जज़ीरा दिखाई दे

    दरिया पे आँसुओं के तुझे ढूँढता हूँ मैं

    पानी पे तेरा नक़्श-ए-कफ़-ए-पा दिखाई दे

    हर शख़्स अपने आप तआ'क़ुब में है रवाँ

    आलम तमाम एक तमाशा दिखाई दे

    आओ कि देख आएँ फ़रामोशियों का शहर

    मुमकिन है कोई अपना पराया दिखाई दे

    'मख़दूम' 'जामी' आह कहाँ खो के रह गए

    अर्ज़-ए-दकन में 'शाज़' अकेला दिखाई दे

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