क़लम से अपने तसव्वुर को क़ैद करने का
क़लम से अपने तसव्वुर को क़ैद करने का
मैं काम करता हूँ ग़ज़लों में रंग भरने का
कोई तलाश कोई जुस्तुजू तो लाज़िम है
यूँ बैठे बैठे मुक़द्दर नहीं सँवरने का
ये बचपने में दिया था सबक़ बुज़ुर्गों ने
सिवा ख़ुदा के किसी से नहीं है डरने का
हमारी मौत ही आ कर इसे उतारेगी
कि जीते जी तो नहीं बोझ ये उतरने का
क़लील वक़्त मसाफ़त तवील है यारो
सवाल ही नहीं उठता कहीं ठहरने का
हमें तो साथ ही जीना है और मरना भी
यही उसूल है दुनिया में प्यार करने का
अब इस को शे'र में तब्दील यार कैसे करें
हमारे सामने इक क़ाफ़िया है झरने का
किसी की याद ने पहरे बिठा दिए हैं 'समर'
अब इस तरफ़ से कोई ग़म नहीं गुज़रने का
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