राब्ता रख तीरगी से रौशनी को छोड़ दे
राब्ता रख तीरगी से रौशनी को छोड़ दे
जो अज़िय्यत-नाक हो ऐसी ख़ुशी को छोड़ दे
जानते सब हैं कि इस के बाद है दौर-ए-ख़िज़ाँ
क्यूँ न दामान-ए-बहार-ए-ज़िंदगी को छोड़ दे
वक़्त अपने आप में इक फ़ित्ना-ए-बेदार है
वक़्त के कहने पे कोई क्यूँ किसी को छोड़ दे
इस से पहले तुझ को नज़रों से गिरा दे ये जहाँ
मान ले कहना ख़ुदारा बे-हिसी को छोड़ दे
वक़्त पर 'अंजुम' न तेरे काम आएगा कोई
दोस्तों से फेर ले मुँह दोस्ती को छोड़ दे
- पुस्तक : احساس کے نشاں (पृष्ठ 31)
- रचनाकार : قمر انجم
- प्रकाशन : ایم آر پبلی کیشن (2018)
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