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रहे धूप में ख़ुश्क शजर की तरह

ज़फ़र हाशमी

रहे धूप में ख़ुश्क शजर की तरह

ज़फ़र हाशमी

MORE BYज़फ़र हाशमी

    रहे धूप में ख़ुश्क शजर की तरह

    पिए दर्द भी राहगुज़र की तरह

    कभी मोड़ कभी है नशेब-ओ-फ़राज़

    कि है ज़िंदगी एक सफ़र की तरह

    तो पैकर-ए-नूर पैकर-ए-तार

    रहे आदमी एक बशर की तरह

    जो ग़ुरूब हो शम्स समेट ले चाँद

    हो तुलूअ' कभी तो सहर की तरह

    रहे आग में भी कभी फूल बने

    रहे बर्फ़ में भी तो शरर की तरह

    खिले दश्त में एक गुलाब की मिस्ल

    फले बाग़ में मीठे समर की तरह

    कभी कोह-ए-गिराँ से रहे हिरास

    जो उठे भी तो गाम 'ज़फ़र' की तरह

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