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रखें हैं जी में मगर मुझ से बद-गुमानी आप

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

रखें हैं जी में मगर मुझ से बद-गुमानी आप

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

MORE BYमुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

    रखें हैं जी में मगर मुझ से बद-गुमानी आप

    जो मेरे हाथ से पीते नहीं हैं पानी आप

    घड़ी घड़ी करें हम पे मेहरबानी आप

    कि हुस्न रखते हैं और आलम-ए-जवानी आप

    मैं बोसा ले ले के रुख़ का उठा दिया पर्दा

    इसी ग़ुरूर पे करते थे लन-तरानी आप

    मैं अपना हाल जो कहने लगा तो यूँ बोला

    ''सुने है कौन कहा कीजिए कहानी आप''

    मैं बे-गुनाह सज़ा-वार गालियों का नहीं

    मेरे साथ करें इतनी बद-ज़बानी आप

    मुसव्विरों ने क़लम रख दिए हैं हाथों से

    बनावें आइने में अपना नक़्श-ए-सानी आप

    वफ़ा की इस से तलब कर हरगिज़ नादाँ

    कि बेवफ़ा है तिलिस्म-ए-जहान-ए-फ़ानी आप

    शराब वस्ल का किस की पिया है ये साग़र

    ख़ुमार-ए-शब से जो रखते हैं सरगिरानी आप

    ये बेवफ़ा भी मियाँ-'मुसहफ़ी' किसी के हुए

    बुतों पे करते हो क्यूँ इतनी जाँ-फ़िशानी आप

    स्रोत :
    • पुस्तक : kulliyat-e-mas.hafii(hashtum) (पृष्ठ 25)

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