रौनक़-ए-दिल थे जो आँखों में समाए हुए लोग
रौनक़-ए-दिल थे जो आँखों में समाए हुए लोग
हो गए ख़्वाब सभी ख़्वाब दिखाए हुए लोग
दिल की दौलत को ज़माने पे लुटाए हुए लोग
देर से पहुँचे हैं हम दूर से आए हुए लोग
जैसे यक-लख़्त किसी हाथ से मोती छूटे
इस तरह ख़र्च हुए सारे कमाए हुए लोग
तू ने जिस को भी छुआ पारा-सिफ़त कर डाला
हाथ आए न तिरे हाथ लगाए हुए लोग
चाँद से चमके हुए महके हुए फूलों से
कैसे होंगे वो तिरे क़ुर्ब को पाए हुए लोग
मुझ को समझाते हैं आदाब-ए-नशिस्त-ओ-बरख़ास्त
मेरे समझाए हुए मेरे सिखाए हुए लोग
किसी मज़लूम की तकलीफ़ भला क्या जानें
चलती फिरती हुई लाशों में समाए हुए लोग
यक-ब-यक फैल गई 'नूर' फ़ज़ा में वहशत
चलते चलते मिरे अतराफ़ से साए हुए लोग
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