Font by Mehr Nastaliq Web

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

रुका तो राज़ खुला कब से अपने घर में था

शुजाअत अली राही

रुका तो राज़ खुला कब से अपने घर में था

शुजाअत अली राही

MORE BYशुजाअत अली राही

    रुका तो राज़ खुला कब से अपने घर में था

    कि मेरा घर तो मिरी हालत-ए-सफ़र में था

    बहुत अजीब सा दुख था जो तू ने मुझ को दिया

    कि इक तबस्सुम-ए-मख़्फ़ी भी चश्म-ए-तर में था

    इराक़ शाम के पर्दे में बे-नक़ाब हुआ

    तमाम दहर का दुख एक नंगे सर में था

    क़दम उरूस-ए-वफ़ा के कहाँ कहाँ पहुँचे

    हिना का रंग सितारों की रहगुज़र में था

    बस एक जुरअत-ए-रिंदाना अर्सा-ए-शब में

    पलक झपकते ही मैं अर्सा-ए-सहर में था

    हज़ार रंग थे उस के हज़ार पहलू थे

    जुदा जुदा वो झलकता नज़र नज़र में था

    ब-फ़ैज़-ए-बार-ए-मलामत झुकी कमर मेरी

    हरा शजर था मगर शहर-ए-बे-समर में था

    स्रोत :
    • पुस्तक : Funoon (Monthly) (पृष्ठ 544)
    • रचनाकार : Ahmad Nadeem Qasmi
    • प्रकाशन : 4 Maklood Road, Lahore (25Edition Nov. Dec. 1986)
    • संस्करण : 25Edition Nov. Dec. 1986

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

    Get Tickets
    बोलिए