साग़र में भी ढलती रहती है सज्दों में भी पलती रहती है
साग़र में भी ढलती रहती है सज्दों में भी पलती रहती है
ख़्वाहिश है बहर-हाल एक मगर सौ भेस बदलती रहती है
आदाब बदलते रहते हैं तहज़ीब बदलती रहती है
इंसान की फ़ितरत साँचे में हालात के ढलती रहती है
बात अपने अपने ज़र्फ़ की है दरिया की मतानत क्यों हो ख़फ़ा
दरिया ही से वो भी निकली है जो नहर मचलती रहती है
इस राहगुज़ार-ए-इम्काँ में अरबाब-ए-हवस की माज़ूरी
फूलों की तमन्ना दिल में लिए काँटों पे चलती रहती है
ऐ हम-नफ़सो आहें न भरो नाकाम सही मायूस न हो
ये किस ने कहा ग़म की आँधी चलती है तो चलती रहती है
सौदा-ए-तलब गुमराह सही लेकिन ये नतीजा क्या कम है
हर सिलसिला-ए-नक़्श-ए-पा से इक राह निकलती रहती है
इम्कान वही पैमाने वही रुज्हान वही अफ़्साने वही
दीवाने वही 'एहसाँ' लेकिन ज़ंजीर बदलती रहती है
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