साहिल से तबीअत घबराई मौजों में सफ़ीना छोड़ दिया
साहिल से तबीअत घबराई मौजों में सफ़ीना छोड़ दिया
जीने की लगन में हम ही ने जीने का क़रीना छोड़ दिया
दामन में लगाई आग इधर अब उन के करम को क्या कहिए
तूफ़ान का रुख़ था जिस रुख़ पर कश्ती का उधर रुख़ मोड़ दिया
थे साथ असीर-ए-फ़स्ल-ए-जुनूँ राहों में न जाने क्या गुज़री
क्या कहिए कि किस ने साथ दिया क्या कहिए कि किस ने छोड़ दिया
जीने न दिया अपनों ने हमें यूँ ज़ोर भी दिल पर चल जाता
कुछ बात ही ऐसी थी हम ने इक शीशा-ए-दिल भी तोड़ दिया
चाहा न हमीं ने वर्ना ये सब चाँद सितारे झुक जाते
कुछ वज्ह-ए-सुकून-ए-दिल के लिए हम ने वो सहारा छोड़ दिया
नाज़ुक था बहुत गुलशन का चलन नाज़ुक था बहुत आईन-ए-चमन
फूलों की तमन्ना हम ने न की काँटों ही से रिश्ता जोड़ दिया
रो रो के गुज़ारी शब वैसे जब सुब्ह-ए-चमन में आँख खुली
अहबाब-ए-वतन ने ऐ 'तहसीन' मय-ख़ाना-ए-याराँ छोड़ दिया
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