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सामने सब मिरे हमदम-ओ-हम-नवा सब मगर पुश्त पर वार करते हुए

ख़लील फ़रहत करंजवी

सामने सब मिरे हमदम-ओ-हम-नवा सब मगर पुश्त पर वार करते हुए

ख़लील फ़रहत करंजवी

MORE BYख़लील फ़रहत करंजवी

    सामने सब मिरे हमदम-ओ-हम-नवा सब मगर पुश्त पर वार करते हुए

    दिन में फूलों से भी नर्म लहजा मगर रात राहों को पुर-ख़ार करते हुए

    साफ़-गोई ने ग़म के सिवा क्या दिया फिर भी हम अपनी फ़ितरत से मजबूर हैं

    जो क़सीदा-नवीसी में माहिर थे वो ख़ुश हैं तौसीफ़-ए-सरकार करते हुए

    अपने अपने सफ़र पर हैं कब से रवाँ फिर भी क्या बात है दोनों थकते नहीं

    आप राहों में काँटे बिछाते हुए हम ज़मीनों को गुलज़ार करते हुए

    जब तरन्नुम की मीज़ान में फ़न तुले अहल-ए-फ़न के लिए मशवरा है मिरा

    संग-ए-इदराक से अपना सर फोड़ लें आप मेआ'र मेआ'र करते हुए

    अपनी अपनी ज़रूरत उन्हें खींच कर फिर क़सीदों के बाज़ार में ले गई

    मेरे अहबाब कुछ दूर तक साथ थे अपने लहजों को तलवार करते हुए

    एक पल की ख़ुशी भी मयस्सर नहीं ज़िंदगी की बख़ीलों की ख़ैरात है

    कट गई ज़िंदगी यूँ तो 'फ़रहत' मगर एक इक साँस दुश्वार करते हुए

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