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समय कहाँ था कि हम तेरी आरज़ू करते

कृष्ण मोहन

समय कहाँ था कि हम तेरी आरज़ू करते

कृष्ण मोहन

MORE BYकृष्ण मोहन

    समय कहाँ था कि हम तेरी आरज़ू करते

    हयात बीत गई अपनी जुस्तुजू करते

    तलाश-ए-यार-ए-तरहदार कू-ब-कू करते

    तरस गया हूँ तमन्ना-ए-रंग-ओ-बू करते

    जमाल देख के तेरा अरक़ अरक़ होता

    अगर तुझे कभी हम गुल के रू-ब-रू करते

    ये और बात कि मैं सरफ़राज़ हो सका

    तमाम उम्र कटी कोशिश-ए-नुमू करते

    तुम्हारे दिल के भरम और भेद खुल सके

    कभी तो हम से भी तुम खुल के गुफ़्तुगू करते

    अगर ये जानते हम तेरा दिल पिघलेगा

    तिरी तलाश में क्यों अपना दिल लहू करते

    ब-फ़ैज़-ए-होश अगर अपना ग़म ग़लत होता

    कभी आरज़ू-ए-साग़र-ओ-सुबू करते

    पनप पाए रिवायत-परस्त सूख गए

    क़दीम रंग की तक़लीद हू-बहू करते

    दुआ-ए-मग़्फ़िरत-ए-दिल क़ुबूल हो जाती

    जो अश्क-हा-ए-नदामत से हम वुज़ू करते

    अदा-ए-नाज़ से कोमल बदन की ख़ुशबू से

    मुझे जो आप सर-अफ़राज़ सुर्ख़-रू करते

    हमें उरूज-ओ-फ़राज़-ए-जुनूँ कहाँ मिलता

    अगर इश्क़ में नीलाम आबरू करते

    हवस हमारी मोहब्बत से भी उभर आई

    कहाँ तक अपनी कसाफ़त की शुस्त-ओ-शू करते

    ब-रंग-ए-'मीर' चमक उठते ‘कृष्ण-मोहन’ हम

    जो सर्फ़ ख़ून ग़ज़ल में कभू कभू करते

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