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सँभलें तो मचलते रहते हैं

कृष्ण मोहन

सँभलें तो मचलते रहते हैं

कृष्ण मोहन

MORE BYकृष्ण मोहन

    सँभलें तो मचलते रहते हैं

    मचलें तो सँभलते रहते हैं

    हम लोग कठिन राहों पर भी

    हँसते हुए चलते रहते हैं

    इस कैफ़-ओ-रंग की दुनिया में

    अरमान मचलते रहते हैं

    निस-दिन अपने मन नैनन में

    कुछ सपने पलते रहते हैं

    ये हस्ती है हर रोज़ नई

    हम आँखें मलते रहते हैं

    ये सच है अपने ज़ेहन-ओ-दिल

    मचलें तो बहलते रहते हैं

    हम शम्अ' की सूरत रातों को

    बे-ख़्वाब पिघलते रहते हैं

    सीने में आशाओं के दिए

    हर रंग में जलते रहते हैं

    जो हर दम रंज-ओ-राहत के

    साँचों में ढलते रहते हैं

    हर रंग हमें रास आता है

    यूँ फूलते फलते रहते हैं

    रंगों का लुत्फ़ उठाने को

    हम रंग बदलते रहते हैं

    पथराई हुई आँखों से क्यों

    फ़व्वारे उबलते रहते हैं

    हैराँ हूँ सर्द एहसास से भी

    क्यों शो'ले निकलते रहते हैं

    मेरे लिए शीतल बादल भी

    इक आग उगलते रहते हैं

    क्यों वक़्त की लौ सँवलाने को

    हम लोग मचलते रहते हैं

    हम तो लम्हों के पतंगों को

    दिन रात मसलते रहते हैं

    हम 'कृष्ण-मोहन' मस्ती में

    हर आन मचलते रहते हैं

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