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शाइस्तगी-ए-इश्क़ का देखें तो ये चलन

शारिक़ बल्यावी

शाइस्तगी-ए-इश्क़ का देखें तो ये चलन

शारिक़ बल्यावी

MORE BYशारिक़ बल्यावी

    शाइस्तगी-ए-इश्क़ का देखें तो ये चलन

    दामन पे आँच आई नहीं जल गया बदन

    उन की करिश्मा-साज़ निगाहों की बख़्शिशें

    काफ़ी था एक फूल मगर दे दिया चमन

    गर मक़्सद-ए-हयात इबादत है सुब्ह-ओ-शाम

    फिर ये जहान-ए-शौक़ ये रौनक़ ये अंजुमन

    इदराक-ए-हुस्न-ए-ज़ात अगर इस को कुछ नहीं

    फिर आदमी है अपने लिए ख़ुद ही अहरमन

    झेलीं हैं हम ने ज़ीस्त की सौ सौ क़बाहतें

    हम बे-नियाज़-ए-रंज को क्या दार क्या रसन

    गुलशन के ख़ार-ओ-ख़स ने रुलाया है इस क़दर

    गुल का भी नाम सुन के लरज़ जाता है बदन

    दुनिया के पास क्या है हमें इस से क्या ग़रज़

    हम अपनी आरज़ू के खिलौनों में हैं मगन

    'शारिक़' नहीं मज़ाक़ कि रिश्ता लहू का है

    देखी जाएगी कभी बर्बादी-ए-चमन

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