शाना तो छुटा ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ से उलझ कर
शाना तो छुटा ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ से उलझ कर
सुलझा न ये दिल काकुल-ए-पेचाँ से उलझ कर
लेता है ख़बर कौन असीरान-ए-बला की
मर मर गए तारीकी-ए-ज़िंदाँ से उलझ कर
ज़ोरों पे चढ़ा है ये मिरा पंजा-ए-वहशत
दामन से उलझता है गरेबाँ से उलझ कर
दीवाने ख़त-ओ-ज़ुल्फ़ के सौदे की लहर में
क्या क्या न बके सुम्बुल-ओ-रैहाँ से उलझ कर
आसार-ए-क़यामत कहीं जल्दी हो नुमायाँ
घबराए है जी अब शब-ए-हिज्राँ से उलझ कर
डरता हूँ कहीं ताब नज़ाकत से न खावे
मू-ए-कमर उस ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ से उलझ कर
सौ पेच में आया है हमारा दिल-ए-सद-चाक
शाना की तरह काकुल-ए-पेचाँ से उलझ कर
गिर्दाब-ए-बला में दिल-ए-आशिक़ को फँसाया
बाली ने तिरी ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ से उलझ कर
तय कर गए सब काबा-ए-मक़्सूद की मंज़िल
इक रह गए हम नख़्ल-ए-मुग़ीलाँ से उलझ कर
दौड़ा हुआ जाता है रक़ीब उस की गली को
यारब ये गिरे रस्ते में दामाँ से उलझ कर
जज़्ब-ए-दिल-ए-मजनूँ ने किया काम जो अपना
नाक़ा न रुका ख़ार-ए-बयाबाँ से उलझ कर
यारब मैं उसे देखूँ अगर दीदा-ए-बद से
रह जाए नज़र पंजा-ए-मिज़्गाँ से उलझ कर
ऐ तीर-फ़गन बस है यही मुझ को तमन्ना
छूटे न रग-ए-जाँ तिरे पैकाँ से उलझ कर
मत बहस रक़ीबान-ए-कज-अंदेश से 'ग़ाफ़िल'
बे-क़द्र न हो ऐसे सफ़ीहाँ से उलझ कर
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.