शम' को अपनी वफ़ा का ज़र्फ़ दिखलाने से है
शम' को अपनी वफ़ा का ज़र्फ़ दिखलाने से है
एक परवाने को मतलब जल के मर जाने से है
अश्क पीने से मिरे नमकीन है पानी यहाँ
ग़म की जो लज़्ज़त यहाँ है मेरे ग़म खाने से है
मेरे होने से ही सारे मय-कदे आबाद हैं
साग़र-ओ-मीना की मस्ती मेरे पैमाने से है
कुछ दवा-दारू से उस को हैफ़ मतलब ही नहीं
मेरे चारागर को मतलब दर्द बढ़ जाने से है
तेरे ग़म की सोज़िशें हैं मेरे ग़म की ताब से
तेरे अफ़्साने की शोहरत मेरे अफ़्साने से है
कैसी ये बादा-परस्ती है तुम्हारी ज़ाहिदो
मय तो पीनी है मगर परहेज़ मयख़ाने से है
सब पे तारी ख़ामुशी है मेरी ख़ामोशी को सुन
सब के दिल में शोर बरपा मेरे चिल्लाने से है
हुस्न को मतलूब है कुछ सोज़-ओ-साज़-ए-'आशिक़ी
शम' का चर्चा भी आख़िर रक़्स-ए-परवाने से है
कल तलक बे-रंग-ओ-बू थे सब मिरे दीवार-ओ-दर
आज आँगन में ये रौनक़ तेरे आ जाने से है
मेरे ही फ़र्त-ए-जुनूँ से ज़िंदगानी है 'सहर'
और सुकूत-ए-बज़्म-ए-हस्ती मेरे मर जाने से है
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