शौक़ से फ़ुर्क़त-ए-साक़ी में मैं साग़र के एवज़
शौक़ से फ़ुर्क़त-ए-साक़ी में मैं साग़र के एवज़
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
MORE BYमुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
शौक़ से फ़ुर्क़त-ए-साक़ी में मैं साग़र के एवज़
अश्क पी जाता हूँ मैं बादा-ए-अहमर के एवज़
ज़ुल्फ़ को चूम के लाम-ए-लब-ए-दिलबर के एवज़
ज़हर खा लेते हैं हम क़ंद-ए-मुकर्रर के एवज़
खो के दिल बोसा-ए-लाम-ए-लब-ए-दिलबर के एवज़
मीम-ए-महरूम हुए मीम-ए-मुक़द्दर के एवज़
देख ओ क़ातिल-ए-बे-रहम गरेबाँ मेरा
बोसे लेता है गुलू के लब-ए-ख़ंजर के एवज़
शौक़-ए-आराइश-ए-रुख़ हो तो पहन लो ऐ जान
अश्क दामन से उठा कर मिरे गौहर के एवज़
आबरू पाई बुन-ए-गोश-ए-सनम से मिल कर
दाना-ए-अश्क ने क्या दाना-ए-गौहर के एवज़
बार-ए-एहसाँ ने तिरे यार झुकाया ऐसा
पाँव पर आ गई दस्तार मिरी सर के एवज़
बे-तकल्लुफ़ तिरी शमशीर मुझे ऐ क़ातिल
ज़ेवर-ए-ज़ख़्म पिन्हा देती है ज़ेवर के एवज़
ख़ाकसारान-ए-मोहब्बत को तिरे कूचे में
हाथ आई है ज़मीं गोर के बिस्तर के एवज़
देखता क्या है मिरे क़त्ल के बाद ऐ क़ातिल
क़तरा-ए-ख़ूँ हैं तिरी तेग़ में जौहर के एवज़
परवरिश बाद-ए-फ़ना जिस्म की करने के लिए
दामन-ए-गोर मिला दामन-ए-मादर के एवज़
जल्वे दिखलाने लगी सफ़हा-ए-तन पर क्या क्या
फ़र्त-ए-काहिश से हर इक रग रग-ए-मिस्तर के एवज़
बादा-ए-रश्क से लबरेज़ हुआ ऐ साक़ी
हल्क़ा-ए-चश्म मिरा हल्क़ा-ए-साग़र के एवज़
आतिश-ए-रश्क ने जिस वक़्त किया सर्द मुझे
तन मिरा गर्म रहा सीना-ए-मिजमर के एवज़
जा पहुँचता है ख़याल-ए-दिल-ए-नादाँ उस तक
जज़्ब-ए-कामिल से शब-ए-ग़म में पैग़मबर के एवज़
चश्म-ए-ज़ाहिर से तो क्या दीदा-ए-बातिन से कभी
रू-ए-महताब न देखूँ रुख़-ए-दिलबर के एवज़
आतिश-ए-रश्क से है परवरिश-ए-दिल हर दम
आप के इश्क़ में ऐ यार समुंदर के एवज़
क्या लड़ाऊँ तिरी आँखों से मैं ऐ जान आँखें
चादर-ए-अश्क मिरे मुँह पे है चादर के एवज़
दुर-ए-दंदाँ के तसव्वुर में लुटा कर दुर-ए-अश्क
मीम-ए-मुफ़्लिस हुए हम ताए-ए-तवंगर के एवज़
हुक्म देता है 'शगुफ़्ता' मुझे मय-नोशी का
हल्क़ा-ए-चश्म मिरा हिज्र में 'साग़र' के एवज़
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