सीना है पुर्ज़े पुर्ज़े जा-ए-रफ़ू नहीं याँ
सीना है पुर्ज़े पुर्ज़े जा-ए-रफ़ू नहीं याँ
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
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सीना है पुर्ज़े पुर्ज़े जा-ए-रफ़ू नहीं याँ
टाँके लगावें किस को दिल की तो बू नहीं याँ
साक़ी है सर्व-ओ-गुल है मुतरिब है और तराना
अफ़सोस इक यही है ऐसे में तू नहीं याँ
हर-चंद तू हमेशा पेश-ए-नज़र है इस पर
छुट तेरी जुस्तुजू के कुछ जुस्तुजू नहीं याँ
मज्लिस से अपनी गुल को भिजवा दे फिर चमन में
किस वास्ते कि उस का वो रंग-ओ-बू नहीं याँ
हैरान हूँ कि कीजे किस से सुराग़-ए-इशरत
मातम-कदा है आलम जुज़-हाए-ओ-हू नहीं याँ
जो आरज़ू दिलों में मुज़्मर है साहिबों के
है आरज़ू तो लेकिन वो आरज़ू नहीं याँ
आए थे हम चमन में सुन कर तिरी ख़बर को
फिर क्या करेंगे रह कर ज़ालिम जो तू नहीं याँ
अहल-ए-सुख़न का या-रब क्यूँ मोहतसिब है दुश्मन
क्लिक ओ दवात है कुछ जाम-ओ-सुबू नहीं याँ
क़ुर्बानियान-ए-उल्फ़त सब सर कटे पड़े हैं
शमशीर के हवाले किस का गुलू नहीं याँ
मज्लिस में तेरी ठहरे क्या 'मुसहफ़ी' कि नादाँ
ग़ैर-अज़-अबे-तबे तो कुछ गुफ़्तुगू नहीं याँ
- पुस्तक : kulliyat-e-mas.hafii(Vol-4)(pdf) (पृष्ठ 209)
- रचनाकार : Ghulam hamdani Mashafi
- प्रकाशन : Qaumi council baraye -farogh urdu (2005)
- संस्करण : 2005
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