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सितारा आँख में दिल में गुलाब क्या रखना

अकरम महमूद

सितारा आँख में दिल में गुलाब क्या रखना

अकरम महमूद

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    सितारा आँख में दिल में गुलाब क्या रखना

    कि ढलती उम्र में रंग-ए-शबाब क्या रखना

    जो रेगज़ार-ए-बदन में ग़ुबार उड़ता हो

    तो चश्म-ए-ख़ाक-ए-रसीदा में ख़्वाब क्या रखना

    सफ़र नसीब ही ठहरा जो दश्त-ए-ग़ुर्बत का

    तो फिर गुमाँ में फ़रेब-ए-सहाब क्या रखना

    जो डूब जाना है इक दिन जज़ीरा-ए-दिल भी

    तो कोई नक़्श सर-ए-सत्ह-ए-आब क्या रखना

    उलट ही देना है आख़िर पियाला-ए-जाँ भी

    हवा के दोश पे तश्त-ए-हबाब क्या रखना

    बस इतना याद है इक भूल सी हुई थी कहीं

    अब इस से बढ़ के दुखों का हिसाब क्या रखना

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