सोज़-ए-दिल आह-ए-शरर-बार से पहचानते हैं
सोज़-ए-दिल आह-ए-शरर-बार से पहचानते हैं
लोग तूफ़ान को आसार से पहचानते हैं
हौसला कहते हैं इक राह-ए-अमल देता है
हश्र को हम तिरी रफ़्तार से पहचानते हैं
रंग-ए-मय रंग-ए-शफ़क़ रंग-ए-गुहर रंग-ए-गुलाब
तेरे रंग-ए-लब-ओ-रुख़सार से पहचानते हैं
अपनी क़िस्मत के ख़म-ओ-पेच को हम दीवाने
तेरे ही गेसू-ए-ख़मदार से पहचानते हैं
अहल-ए-दिल अहल-ए-जिगर अहल-ए-नज़र अहल-ए-वफ़ा
हम को शौक़-ए-रसन-ओ-दार से पहचानते हैं
गर्दिश-ए-चर्ख़ का रुख़ हो कि ज़माने का मिज़ाज
सिर्फ़ हम दीदा-ए-बेदार से पहचानते हैं
और हैं वो जो ज़र-ओ-सीम पे रखते हैं नज़र
हम तो इंसान को किरदार से पहचानते हैं
हुस्न वालों की ये ख़ूबी है कि दिल वालों को
इक नज़र ही में बड़े प्यार से पहचानते हैं
शाइ'री का ये करम कम तो नहीं है 'मंशा'
लोग तुझ को तिरे अशआ'र से पहचानते हैं
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