सुख़नवरी का ये बे-सूद कारोबार है क्या
सुख़नवरी का ये बे-सूद कारोबार है क्या
जुनून-ए-शीशा-गरी का मआल-ए-कार है क्या
वो हर चमन को मिटाने को बे-क़रार है क्या
उसे गुलों का तबस्सुम भी नागवार है क्या
न जाने कौन सी बस्ती पे मेहरबाँ हो जाए
दराज़-दस्ती-ए-दौराँ का ए'तिबार है क्या
ज़माना हो गया जिस कारवाँ को छोड़े हुए
अब उस का ज़िक्र मसाफ़त में बार बार है क्या
हवाएँ आप बदल देंगी रास्ता अपना
इसी उमीद पे जीने का इंहिसार है क्या
ये राह ख़ैर की वो शर की एक को चुन लो
मियाँ खड़े हो दोराहे पे क्यों शुमार है क्या
नफ़स नफ़स है फ़ुज़ूँ बाज़गश्त-ए-बाँग-ए-जरस
चल ऐ असीर-ए-हवस चल दे इंतिज़ार है क्या
सितम का शहर भी डूबा है आँसुओं में कभी
रवाँ इन आँखों से पैहम ये आबशार है क्या
'सहर' ये रास्ते क्यों अजनबी से लगते हैं
जहाँ ये 'उम्र कटी ये वही दयार है क्या
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