सुनाएँ जा के किसे अपनी दास्ताँ हम तुम
सुनाएँ जा के किसे अपनी दास्ताँ हम तुम
ख़ुद अपना राज़ हैं ख़ुद अपने राज़-दाँ हम तुम
अब आ मिले हैं तो इक दूसरे में खो जाएँ
भटक चुके हैं बहुत दिन यहाँ वहाँ हम तुम
समेट लाए हैं ख़ुद को तो ध्यान आता है
बिखर गए थे न जाने कहाँ कहाँ हम तुम
क़दम क़दम पे वो दुनिया की आज़माइश थी
कि ले रहे थे ख़ुद अपना ही इम्तिहाँ हम तुम
हक़ीक़तों से तो ये ख़्वाब ख़ूबसूरत हैं
गुज़ार दें इन्हीं ख़्वाबों के दरमियाँ हम तुम
सफ़र में उस का ये कहना था हर क़दम पे 'नसीम'
कि रहगुज़र को बना देंगे कहकशाँ हम तुम
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