तासीर की तरह कभी ता'बीर की तरह
तासीर की तरह कभी ता'बीर की तरह
तुम मिल गए मुझे मिरी तक़दीर की तरह
इस शहर-ए-दिल पे आप का क़ब्ज़ा रहे सदा
आज़ाद हो न पाऊँ मैं कश्मीर की तरह
मैं ने ज़माने-भर के लुटेरों की आँख से
तुम को छुपा के रक्खा है जागीर की तरह
तेरे लबों को देख के सुनता हूँ मैं तुझे
तेरा सुकूत होता है तक़रीर की तरह
तू जानता नहीं है वो चुप-चाप आदमी
मुँह में ज़बान रखता है शमशीर की तरह
छोड़ा नहीं है आज भी मसरूफ़ियात ने
इतवार लग रहा है मुझे पीर की तरह
क्या हो सकेगा कोई तुम्हारी तरह 'रज़ा'
तुम तो नहीं हो अपनी ही तस्वीर की तरह
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