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तमाम नूर-ए-तजल्ली तमाम रंग-ए-चमन

दर्शन सिंह

तमाम नूर-ए-तजल्ली तमाम रंग-ए-चमन

दर्शन सिंह

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    तमाम नूर-ए-तजल्ली तमाम रंग-ए-चमन

    ये तेरा चाँद सा चेहरा ये तेरा गुल सा बदन

    डगमगाए क़दम गरचे राह-ए-उल्फ़त में

    कहीं थे दश्त-ओ-बयाबाँ कहीं थे दार-ओ-रसन

    हज़ार आए ज़माने में इंक़लाब मगर

    मिज़ाज हुस्न का बदला 'इश्क़ ही का चलन

    सबात-ओ-सब्र ज़रूरी है आदमी के लिए

    शिकन जबीं पे आए ब-वक़्त-ए-रंज-ओ-मेहन

    ये बात और है नाक़िद रहे ज़माना मगर

    जहाँ से मिट नहीं सकते नुक़ूश-ए-तेशा-फ़न

    मिरा दयार है मेहर-ओ-वफ़ा का गहवारा

    अदू-ए-मेहर-ओ-मोहब्बत का है मगर मदफ़न

    हक़ीक़तों से ब-हर-हाल जो गुरेज़ करे

    वो शा'इरी है हिकमत वो हुनर है फ़न

    हर इक को जान ज़माने में अपनी प्यारी है

    'अज़ीज़-तर है मगर हम को जान से भी वतन

    बहुत ही शोर था रंगीनी-ए-जहाँ का मगर

    मिला हम को यहाँ कुछ सिवा-ए-रंज-ओ-मेहन

    वो जान-ए-हुस्न-ओ-लताफ़त ही बन के आया है

    बहार ग़ुंचा-ब-ग़ुंचा सबा चमन-ब-चमन

    हज़ार बार हुआ इम्तिहान-ए-'इश्क़ मगर

    जाने हुस्न है क्यूँ मुझ से बद-गुमाँ 'दर्शन'

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