तवज्जोह कौन देता है किसी फीकी कहानी पर
तवज्जोह कौन देता है किसी फीकी कहानी पर
हम ऐसे में करें क्या बात अपनी ज़िंदगानी पर
लबों पर हो तबस्सुम और आँखों में न हो पानी
हमें हैरत हुआ करती है ऐसी शादमानी पर
हमें सूरत बदलने का भरोसा किस तरह होगा
रगों में ख़ून के बदले रवाँ कुछ बूँद पानी पर
नया कुछ भी नहीं होता कि सब जाते हैं दुनिया से
मगर हैराँ बहुत हैं लोग तेरी नौहा-ख़्वानी पर
किसी के दुख पे उस के क़हक़हों में जान आती है
वो ताबिंदा है ग़ैरों के ग़मों की तर्जुमानी पर
हम अपना भी भला 'बेबाक' साहब कर तो सकते हैं
मगर सब छोड़ देते हैं तुम्हारी मेहरबानी पर
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